kheti badi : खेती में होने वाले खर्चे को कम कैसे करें

खेती में होने वाले खर्चे को कम कैसे करें


इस ब्लाॅग के माध्यम से हम गांव में शुरू किए जाने वाले बिजनेस, आधुनिक खेती, पशु-पक्षी पालन, मालो की खरीदी,और बिक्री आदि के बारे में जानकारी देते है.
आज हम जानकारी दे रहे है जीरो लागत यानि शून्य लागत कृषि के बारे में.
खेतों में बुआई के लिए बीज, उर्वरक खाद, कीटनाशक दवाएं और पानी की आवश्यकता होती है.
किसानों को इन पर काफी खर्च करना पड़ता है,
कई बार पयाप्र्त खाद, कीटनाशक दवाएं देने के बावजूद पैदावार कम होती है. इससे उन्हें मुनाफा भी कम होता है.



किसान भाई अपने खेती में होने वाली लागत को कैसे कम करें, ताकि अच्छा मुनाफा कमा सकें.
आइए जानते है कम लागत में अधिक मुनाफा कैसे कमा सकते है.
खेतों से अधिक मुनाफा हो इसके लिए दो तरीके है,
पहला है खेतों में उत्पादन को बढ़ाया जाएं और दूसरा है लागत यानी खेती में होने वाले खर्चे को कम किया जाएं.
हम यहां बात कर रहे है लागत को कम करके मुनाफे को कैसे बढ़ाया जा सकता है.
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के रहने वाले सुभाष पालेकर को देश में जीरो लागत यानि शून्य लागत कृषि का जन्मदाता कहा जाता है।
सुभाष पालेकर के अनुसार आधुनिक खेती और रासायनिक खेती से वे संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि खेतों में अच्छे बीज का रोपण करने और पर्याप्त खाद देने के बावजूद खेत में उत्पादन कम हो रहा था.
 जब उत्पादन नहीं बढ़ा तो उन्होंने कुछ नया करने के बारे में सोचा.


सुभाष पालेकर बताते हैं कि जब खेत में पर्याप्त उर्वरक डालने के बाद भी उत्पादन नहीं बढा तो उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ कि बिना मानवीय सहायता के हरे-भरे जंगल खड़े हैं, यहां पर ना तो कोई इनके पोषण के लिए रासायनिक उर्वरक डालता है और न ही कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाता है.
जब ये हरे-भरे जंगल बिना किसी रासायनिक खाद के पनप सकते है तो खेतों में फसल क्यों नहीं. इसी को आधार बनाकर मैंने बिना लागत पर खेती करने का निश्चय किया।
काफी अनुसंधान के बाद उन्होंने एक पद्धति विकसित की, जिसको शून्य लागत प्राकृतिक कृषि का नाम दिया।
इस पद्धति से काफी कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाने के बाद आज वे अपने साथी किसान भाईयों की भी मदद कर रहे है.
खेती में जो खर्चे होते है वह है, खेत की तैयारी,.. बीज,.. उर्वरक,.. कीटनाशक दवाईयां,.. खेतों की निराई-गुड़ाई,... सिंचाई व फसल की कटाई आदि.
इन्हें करवाना भी जरूरी है, लेकिन इनका उपयोग सही समय पर सही तरीके से किया जाएं तो लागत को कम किया जा सकता है।
सबसे पहले हम बात करते है बीज की.
आजकल संकर बीजों का चलन काफी है। इन्हें हर साल बाजार से खरीदना पड़ता है।
इनकी उत्पादन क्षमता सामान्य किस्मों की अपेक्षा अधिक होती है,
परंतु अनेक फसलों और सब्जियों में पौध प्रजनकों द्वारा ऐसी किस्में भी तैयार कर ली गई हैं, जो संकर किस्मों के लगभग उत्पादन देती है।

इस तरह के बीज किसान स्वयं अपने खेत पर तैयार कर सकते हैं।
इससे बीज पर खर्च होने वाली राशि में 40 से 60 प्रतिशत तक कमी की जा सकती है।
पोधों के पोषण के लिए बाजार से खरीदे गए नत्रजन, फास्फोरस और पोटाशयुक्त उर्वरक उपयोग में लाए जाते हैं।
लेकिन फसल को जितनी मात्रा में रासायनिक उर्वरक दिया जाता है, उसका 40 प्रतिशत ही पौधों को मिल पाता है।
शेष सिंचाई जल के साथ मिलकर या तो बह जाता है या कम नमी की वजह से गैस के रूप में वातावरण में चला जाता है।
इन उर्वरकों की मात्रा को कम करने एवं उपयोग क्षमता को बढ़ाने में अखाद्य तेलों जैसे नीम,.. करंज आदि की खली का उपयोग किया जा सकता है।
इन खलियों के चूरे की परत यूरिया के दाने पर चढ़ाकर यूरिया के नत्रजन को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।
इसी तरह से फास्फोरस की उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए फास्फोरस को घोल कर उपयोग किया जाना चाहिए।
बाजार से खरीदे गए रासायनिक खाद पर होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है.
यदि किसान भाई बाजार से खरीदे गए इन रासायनिक खाद की बजाएं जैविक खाद का उपयोग करेंगे तो इसमें होने वाले खर्चे को कम कर सकते हैं.
जैविक खाद जैसे गोबर खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
ये जैविक खाद किसान अपने स्तर पर तैयार कर सकते हैं।
गांवों में अधिकतर घरों में गोबर का सबसे अधिक उपयोग उपले या कंडे बनाकर ईंधन के तौर में किया जाता है।
यदि इस गोबर को गोबर गैस में परिवर्तित कर दिया जाएं तो ईंधन की समस्या तो दूर होगी ही साथ ही साथ इससे अच्छे किस्म का खाद भी प्राप्त किया जा सकता है.
अधिकतर इलाकों में किसान भाई फसल की कटाई के बाद खेतों में आग लगा देते है.
इससे वातावरण तो प्रदुषित होता ही है साथ ही इससे भारी मात्रा में जीवांश जलकर नष्ट हो जाते है।
इस नुकसान को रोकने के लिए फसल की कटाई के बाद खेतों को जोतकर मिट्टी को पलट देना चाहिए.
इससे कटे हुए पौधों के डंठल, ठूँठ आदि निचली सतह में जाकर मिट्टी के नीचे दब जाते है जो बारिश आने पर सड़कर खाद बन जाते हैं।
अब बात करते है सिंचाई के दौरान होने वाले खर्चे की,
फसलों में सिंचाई के दौरान पानी कहीं ज्यादा तो कहीं कम पहुंच पाता है.
इस तरह से पूरे खेत में समान मात्रा में पानी नहीं मिल पाता है. जिससे फसल को नुकसान होता है.
पानी की उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए एक नाली छोड़कर एकांतर सिंचाई यानी अल्टरनेट सिंचाई,. स्प्रिंकलर सिंचाई यानी फुहार सिंचाई,. टपक सिंचाई आदि विधियों को अपनाना चाहिए.
फसल की कतारों के बीच अवरोध परत यानी मलच का उपयोग करके पानी पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है.
अब बात आती है फसल को कीड़ों और रोगों से बचाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक दवाओं की.
कीटनाशक दवाओं का असर सिर्फ नुकसान देने वाले कीड़ों व रोगों पर ही नहीं होता है,
बल्कि खेतों पर लाभ पहुचाने वाले कीड़ों व रोगों पर भी होता है.
इनके नियंत्रण के लिए स्वच्छ कृषि, परजीवी व शिकारी कीड़ों व कीड़ों को हानि पहुँचाने वाले कवकों, फफूँदों व वायरस का प्रयोग असरकारक पाया गया है।
इनके अलावा नीम, करंज, हींग, लहसुन, अल्कोहल आदि के उपयोग, से रसायनों के उपयोग पर होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है
विषेशज्ञो की सलाह पर रसायनिक कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल अंतिम विकल्प के तौर पर अपना सकते हैं.

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