kheti badi : खरीफ के मौसम में प्याज की खेती


खरीफ के मौसम में प्याज की खेती  


आज हम जानकारी दे रहे है प्याज की बंपर पैदावार कैसे करें.भारत प्याज उत्पादन में चीन के बाद दूसरे और क्षेत्रफल में पहले स्थान पर है, लेकिन उत्पादकता की बात करें तो यह प्रमुख उत्पादक देशों जैसे चीन, अमेरीका, नीदरलैंड आदि की तुलना में काफी कम है।


प्याज की फसल के लिए ऐसी जलवायु की अवश्यकता होती है जो ना बहुत गर्म हो और ना ही ठण्डी।
 अच्छे कन्द बनने के लिए बड़े दिन तथा कुछ अधिक तापमान होना अच्छा रहता है।
सभी किस्म की भूमि में इसकी खेती की जाती है, लेकिन उपजाऊ दोमट मिट्टी,
जिसमे जीवांश खाद प्रचुर मात्रा में हो व
जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो, सर्वोत्तम रहती है। भूमि में अधिक क्षारीय व अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिए अन्यथा कन्दों की वृद्धि अच्छी नहीं हो पाती है।
यदि भूमि में गंधक की मात्रा में कमी हो तो 400 किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से खेत में मिलाना चाहिए,
लेकिन ध्यान रहे इसे अन्तिम तैयारी के समय कम से कम 15 दिन पहले मिलायें।
प्याज की खेती के लिए गोबर खाद सबसे अच्छा होता है।


खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टर 400 क्विंटल गोबर खाद भूमि में मिलाना चाहिए। इसके अलावा 100 किलो नत्रजन, 50 किलो फास्फोरस एवं
100 किलो पोटाश प्रति हेक्टर की दर से आवश्यकता होती है।
नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय देना चाहिए।
और नत्रजन की शेष मात्रा रोपाई के एक से डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में दें।
खरीफ में प्याज की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों में पूसा रेड,
पूसा रतनार,
एग्रीफाउंड लाइट रेड,
एग्रीफाउंड रोज,
पूसा व्हाइट राउंड,
पूसा व्हाइट फ्लैट का इस्तेमाल करे.


आईए अब प्याल की बुआई के बारे में जानें
प्याज की बुवाई खरीफ मौसम में, यदि बीज द्वारा पौधा बनाकर फसल लेनी हो तो, जून माह के मध्य तक करते हैं
यदि छोटे कन्दों द्वारा खरीफ में अगेती यानि हरी प्याज के तौर पर लेनी हो तो कन्दों को अगस्त माह में बोयें।
एक हेक्टर में प्याज की फसल लगाने के लिए 8 या 10 किग्रा बीज पर्याप्त होता है।
पौधे एवं कन्द तैयार करने के लिए बीज को क्यारियों में बोयें, जो 3 दश्मलव 1 मीटर आकार की हो।
वर्षाकाल में पानी की उचित निकास के लिए क्यारियों की ऊँचाई 10 सेंटीमीटर से लेकर 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
बीजों को 2 सेंटीमीटर से लेकर 3 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए और पौधों के बीच की दूरी 5 सेंटीमीटर से लेकर 7 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में लगाना अच्छा होता है।
क्यारियों की मिट्टी को बुवाई से पहले अच्छी तरह भुरभुरी कर लेनी चाहिए। 
और खरपतवार को अच्छे से साफ कर देना चाहिए।
पौधों के आद्र गलन बीमारी से बचाने के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज या
थिरम 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज से उपचारित करके बोना चाहिए।
बोने के बाद बीजों को बारीक खाद एवं भुरभुरी मिट्टी व घास से ढाक दें। उसके बाद झारे से पानी दें।
अंकुरण के बाद घास फूस को हटा दें।
पौधों की रोपाई के लिए
पौधे लगभग 8 सप्ताह में रोपाई योग्य हो जाती है।
खरीफ फसल के लिए रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई के अन्तिम सप्ताह से लेकर अगस्त तक है।
रोपाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें।
कन्दों से बुवाई करते समय
कन्दों की बुवाई 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेड़ों पर तथा 10 सेंटीमीटर की दूरी पर दोनों तरफ करते हैं।
5 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर व्यास वाले आकार के कन्द ही चुनना चाहिए।
एक हेक्टर के लिए 10 क्विंटल कन्द पर्याप्त होते हैं।
बुवाई या रोपाई के बाद आता सिंचाई
बुवाई या रोपाई के बाद तीन या चार दिन बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें ताकि मिट्टी हल्की गिली रहें।
इसके बाद में भी हर 8 या 12 दिन में सिंचाई अवश्य करतें रहें।
फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष जब पीले पड़कर गिरने लगे तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए।
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